




✍🏻 नारीत्व संरक्षण की ओर पहला कदम – हिमालयन अस्पताल में दुर्लभ जन्मजात रोग की सफल सर्जरी
✍🏻 कनजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेज़िआ’ नामक जन्मजात बीमारी से थी पीड़िता गरिमा
✍🏻 अस्पताल के बाल- शल्य विभाग को मिली सफलता; परिजनों ने दिया अस्पताल को धन्यवाद
ऋषिकेश, उत्तराखंड, हरीश तिवारी:
हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट ने एक बार फिर चिकित्सा क्षेत्र में उत्कृष्टता का उदाहरण पेश किया है। अस्पताल के बाल शल्य चिकित्सा विभाग ने एक 15 वर्षीय किशोरी (बदला हुआ नाम: गरिमा) की दुर्लभ एवं जटिल बीमारी ‘कनजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेज़िया’ के लिए “फेमिनाइज़िंग जेनाइटोप्लास्टी” सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
15 वर्षीय गरिमा (परिवर्तितन नाम) अपनी अन्य हम उम्र लड़कियों की तरह ही थी, सिवाय एक बात के। किसी जन्मजात मेडिकल कारण से उसके जननांगों का सामान्य विकास नहीं हो पाया था। वह ‘कनजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेज़िआ’ नामक जन्मजात बीमारी से पीड़ित थी। यूँ तो दवाओं से उसका इलाज चल रहा था परंतु जननांगों की संरचना ठीक करने के लिए उसे एक जटिल ऑपरेशन की जरूरत थी।
कई अस्पतालों में जांच व उपचार के बाद हिमालयन अस्पताल के बाल-शल्य (पीडियाट्रिक सर्जरी) विभाग में संपर्क किया। वरिष्ठ सर्जन डॉ. संतोष सिंह ने जरूरी स्वास्थ्य परीक्षण करवाए। जांचों के बाद गरिमा की ‘करेक्टिव’ सर्जरी (पुनर्निर्माण) करने का निर्णय लिया गया।
लगभग पाँच घंटे चले इस ऑपरेशन के बाद गरिमा की जननांग-संरचना पुनः स्थापित की गयी. मेडिकल भाषा मे इसे ‘फेमिनाइज़िंग जेनाइटोप्लास्टी’ कहते हैं। गरिमा अब अन्य लड़कियों की तरह ही है और एक सामान्य जीवन जी सकती है।
ऑपरेशन टीम में डॉ संतोष सिंह के अलावा रेज़िडेंट डॉ फेनिल, डॉ सागर व डॉ आदित्य शामिल रहे। एनेस्थीसिया टीम में डॉ. अभिमन्यु, डॉ.वीना अस्थाना, डॉ.गुरजीत, डॉ.अनुप्रिया, डॉ. स्वप्निल शामिल रहे। ऑपरेशन थिएटर स्टाफ आशा, गीता व नवीन ने भी इसमे सहयोग किया।
क्या है ‘कनजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेज़िआ’?
‘कनजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेज़िआ’ एक जन्मजात स्थिति है जो कि हर 15000- 20000 जन्मे बच्चों मे किसी एक को हो सकती है। इसमें किसी एक विशेष ‘एन्ज़ाइम’ की कमी से जननांगों का सामान्य विकास नहीं हो पाता है। लड़कियों मे ये ‘परसिसटेंट यूरोजेनाइटल साइनस’ नामक अवस्था बना देता है जिसमे मूत्रद्वार तथा योनिमार्ग आपस मे जुड़े रहते हैं। इस वजह से जननांग सामान्य नहीं दिखते हैं। इसके अलावा, इसमें बार बार मूत्र संक्रमण की संभावना भी बनी रहती है। ‘फेमिनाइज़िंग जेनाइटोप्लास्टी’ ऑपरेशन में इन दोनों रास्तों को अलग कर के उन्हे सामान्य दिखने जैसा स्वरूप देने की कोशिश की जाती है। इस अवस्था को जन्म के समय पहचानना अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि कुछ नवजात शिशुओं मे ये जानलेवा भी हो सकती है।
– यह सर्जरी केवल शारीरिक सुधार नहीं है, बल्कि गरिमा जैसे मरीजों को मानसिक, सामाजिक और आत्मिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह चिकित्सा क्षेत्र में टीम वर्क का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। अस्पताल की ओर से हम गरिमा के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। डॉ.विजय धस्माना, अध्यक्ष, स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय

