




ब्यूरो,ऋषिकेश:
उत्तराखंड विधानसभा बजट सत्र के दौरान प्रश्न कल पर चर्चा करते हुए शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने एक में सवाल के जवाब में यह जानकारी दी की संस्कृत को लेकर फिलहाल हमारे पास कोई नीति नहीं है। इस वक्तव्य से संस्कृत जगत में निराशा महसूस की जा रही है।उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय प्रबंधकीय शिक्षक संघ ने सरकार से मांग उठाई की संस्कृत शिक्षा विभाग में आमूल चूल परिवर्तन किए जाएं।
विधानसभा में चर्चा के दौरान शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत संस्कृत शिक्षा के प्रचार प्रसार को लेकर वक्तव्य दे रहे थे लैंसडाउन के विधायक दिलीप सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड देव भाषा का पालन करने वाला राज्य है इसके उत्थान के लिए मंत्री जी बताएं कि हम क्या नीति बना रहे हैं। जिस पर मंत्री ने जवाब दिया कि संस्कृत के लिए फिलहालअभी नीति नहीं बना रहे है।
इस मामले में प्रदेश अध्यक्ष
उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय प्रबंधकीय शिक्षक संघ, डॉ.जनार्दन प्रसाद कैरवान ने कहा कि विधानसभा के भीतर शिक्षा मंत्री के द्वारा संस्कृत के लिए कोई नीति नहीं जैसे वक्तव्य ने मन को झकझोर दिया। जहां संस्कृत शिक्षा विभाग में आमूल चूल परिवर्तन होना चाहिए था वहां विभागीय अधिकारीयों में मात्र खानापूर्ति कर श्रेय लेने की होड़ मची है। विभागीय मंत्री से संस्कृत शिक्षा विभाग को बहुत सारी उम्मीदें हैं। संस्कृत शिक्षा आज ढांचागत विकास के लिए तरस रहा है। संस्कृत समाज को उम्मीद ही नहीं बल्कि अटूट विश्वास है कि संस्कृत शिक्षा का ढांचागत विकास करते हुए सभी सुझावों पर तत्काल प्रभाव से क्रियान्वित करेंगे।
प्रदेश अध्यक्ष में विभागीय मंत्री को सुझाव दिया कि प्रदेश की द्वितीय राजभाषा संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तराखंड संस्कृत अकादमी/संस्कृत शिक्षा निदेशालय एवं विद्यालयों के रखरखाव व अन्य संसाधनों के लिए का बजट बढ़ाया जाए। प्रदेश के उत्तर मध्यमा विद्यालयों महाविद्यालयों का ढांचागत विकास करते हुए माध्यमिक एवं वर्गीकृत संस्कृत महाविद्यालयों में पदों का सृजन किया जाए। आज भी संस्कृत विद्यालय महाविद्यालय एक ही छत के नीचे संचालित हो रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष डॉ.जनार्दन कैरवान ने सुझाव दिया कि संस्कृत शिक्षा निदेशालय एवं संस्कृत शिक्षा परिषद् के लिए भूमि भवन निर्माण तत्काल किया जाए। दोनों ही कार्यालय शिक्षा विभाग के निदेशालय भवन में चल रहे हैं। उत्तराखण्ड के सभी माध्यमिक विद्यालयों में प्रवक्ता संस्कृत एवं सहायक अध्यापक संस्कृत के पद सृजित किए जाएं साथ ही सभी राजकीय महाविद्यालयों में संस्कृत विभाग खोला जाए। जिससे संस्कृत भाषा भाषी लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। प्रदेश के 11 जनपदों में संस्कृत सहायक निदेशकों के पद रिक्त चल आ रहे हैं उन्हें तत्काल आयोग के जरिए भर जाए। संस्कृत विद्यालयों महाविद्यालयों में वर्षों से कार्यरत प्रबंधकीय शिक्षक जिन्हें राजकोष से अल्प मानदेय दिया जाता है, उन्हें तदर्थ नियुक्ति प्रदान की जाए। वर्तमान में 22 से अधिक विद्यालयों में प्रबंधकीय शिक्षक प्रधानाचार्य के साथ ही प्रवेश,परीक्षा,प्रश्न पत्र निर्माण, मूल्यांकन जैसे गोपनीय कार्यों का संपादन कर रहे हैं।

