



– जाति प्रमाण पत्र विवाद पर उत्तराखंड बेरोजगार संघ का आरोप, संविधान पीठ के निर्णयों का किया हवाला
– ऋषिकेश मेयर शभू पासवान का निर्वाचन रद्द कर पुनः चुनाव की उठी मांग
देहरादून: ऋषिकेश नगर निगम के मेयर शंभू पासवान के जाति प्रमाण पत्र को लेकर उठे विवाद पर हाई कोर्ट के आदेश के बाद जिलाधिकारी देहरादून द्वारा गठित स्क्रीनिंग कमेटी ने अपनी जांच पूरी कर ली है अब ऋषिकेश नगर निगम मेयर का भविष्य जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर निर्भर करता है। इन सबके इतर उत्तराखंड बेरोजगार संघ के प्रवक्ता सुरेश सिंह ने इस प्रकरण में गहन अध्ययन कर मीडिया के समक्ष बयान जारी किया। उन्होंने मेयर शंभू पासवान के निर्वाचन को अवैध ठहराते हुए तत्काल निरस्त करने एवं पुन: चुनाव कराने की मांग की है। सुरेश सिंह ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टीं ने बिहार मूल के व्यक्ति को उत्तराखंड में अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करवाकर मेयर का टिकट दिया और निर्वाचित करवा दिया, जो संविधान के साथ-साथ सवोंच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यह उत्तराखड के मूल निवासी अनुसूचित जाति वर्ग के अधिकारों का खुला हनन है।प्रवक्ता सुरेश सिंह ने मुख्य सचिव, सचिव समाज कल्याण एवं अपर सचिव कार्मिक एवं सतर्कता को ज्ञापन सौंपते हुए मेयर शंभू पासवान का जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने की मांग की है।
उत्तराखंड बेरोजगार संघ के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश सिंह ने हाईकोर्ट के निर्देश पर देहरादून जिलाधिकारी द्वारा गठित जांच कमेटी के समक्ष शिकायतकर्ता दिनेश चंद्र मास्टर की ओर से अनेक साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिनमें उच्चतम न्यायालय एवं भारत सरकार की कईं गाइडलाइस शामल हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मर्री चंद्रशेखर राव बनाम डीन ऑफ लॉ फैकल्टी, रंजना कुमारी बनाम उत्तराखड राज्य तथा संतलाल बनाम महाराष्ट्र राज्य जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि केवल प्रवास के आधार पर कोई व्यक्ति उस राज्य की अनुसूचित जाति नहीं मानी जा सकती, जहां वह बाद में जाकर बस गया हो। संघ के अनुसार यह मामला न केवल एक व्यक्ति विशेष के विरुद्ध है बल्कि यह पूरे उत्तराखंड के अनुसूचित जाति समुदाय के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
उन्होंने भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 1977 में जारी शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि किसी विशेष जाति का आरक्षण लाभ केवल उसी राज्य में मान्य होता है जहां उस जाति को राष्ट्रपति की अधिसूचना द्वारा अनुसूचित घोषित किया गया हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की अधिसूचना की तिथि (1950) के अनुसार ही किसी व्यक्ति की जाति मान्यता प्राप्त होती है और किसी भी अन्य राज्य में वही जाति अनुसूचित होने के बावजूद प्रवासी को वहां अनुसूचित जाति का लाभ नहीं दिया जा सकता।


