



– अक्षय तृतीया पर विशेष
हरीश तिवारी,ऋषिकेश
स्कंद पुराण के केदार खंड में वर्णित तीर्थ नगरी के पौराणिक श्री भारत मंदिर को ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। श्री भरत भगवान के हृषिकेश नाम से ही इस तीर्थ नगरी का नाम ऋषिकेश लिया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि श्री भरत मंदिर की 108 बार परिक्रमा का पुण्य लाभ भगवान श्री बदरीनाथ के दर्शन के समान है।
आद्य गुरु शंकराचार्य की ओर से स्थापित भगवान हृषिकेश (विष्णु ) के बारे में पौराणिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया को मंदिर की 108 परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं को वही फल प्राप्त होता है जो कि भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के उपरांत मिलता है। इसी परंपरा के चलते श्रद्धालु इस मंदिर की परिक्रमा करते आ रहे हैं।
पौराणिक धर्मग्रंथों के उल्लेख तथा विद्वानों की मान्यता बताती है। कि हृषिकेश नारायण श्री भरत मंदिर सतयुग में स्थापित मंदिर है। स्कंद पुराण, केदारखंड, वामनपुराण, नरसिंह पुराण, श्रीमद् भागवत गीता तथा महाभारत आदि ग्रंथों में इसका स्पष्ट उल्लेख है। भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम स्तोत्र में हृषिकेश नारायण श्री भरत भगवान का वर्णन कुछ इस तरह है। ‘अप्रमेयो हृषिकेशः पदमानाभम सुरेश्वरः ।
श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने अक्षय तृतीया के महत्व को बताते हुए कहा कि उत्तराखंड में तीर्थनगरी ऋषिकेश को योग और ध्यान की नगरी कही जाती है। इस नगरी को भगवान विष्णु की भी नगरी कही जाती है। इतना ही नहीं ऋषिकेश का नाम भगवान विष्णु के नाम हृषिकेश से लिया गया है। इस पतित पावनी भूमि पर भगवान विष्णु स्वयं विराजमान है।
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भगवान विष्णु ने ऋषियों को दिया था दर्शन
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में रैभ्य ऋषि एवं सोम ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको दर्शन दिए और उनके आग्रह पर अपनी माया के दर्शन कराए। ऋषि ने माया के दर्शन कर भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा कि प्रभु आप अपनी माया से मुक्ति प्रदान करें। भगवान विष्णु ने तब ऋषि को वरदान दिया कि आपने इन्द्रियों (हृषीक) को वश में करके मेरी आराधना की है, इसलिए यह स्थान हृषीकेश कहलाएगा और मैं कलियुग में भरत नाम से यहां विराजमान रहूंगा। हृषीकेश के त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान के बाद जो भी प्राणी मेरा दर्शन करेगा, उसे माया से मुक्ति मिल जाएगी।
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बदरीनाथ की तरह शालिग्राम शिला से निर्मित है मूर्ति
श्री भरत मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति उसी शालिग्राम शिला से निर्मित है, जिस शिला से बद्रीनारायण की मूर्ति निर्मित की गई है। हर वर्ष बसन्त पंचमी के दिन हृषीकेश नारायण भगवान श्री भरत को हर्षोल्लास के साथ त्रिवेणी संगम पर स्नान के लिए ले जाया जाता है एवं धूमधाम से नगर भ्रमण के बाद पुनः मन्दिर में प्रतीकात्मक प्रतिष्ठत किए जाते हैं। इसके अलावा भरत भगवान के मंदिर में आज भी पुरातन कलाकृतियों के अवशिष्ट मौजूद है।


