– चंड़ीगढ़ निवासी 75 वर्षीय नरेंद्र कौर ने पूरी की 100 वीं श्री हेमकुंड धाम की यात्रा
ब्यूरो,ऋषिकेश
उत्तराखंड के पावन धाम श्री हेमकुंड साहिब के दरबार में वैसे तो प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं। विपरीत मौसम और हालात के बीच इन सब की आस्था देखते बनती है। श्रद्धालुओं कि इस भीड़ में एक शख्स ऐसा भी है जो उम्र के इस पड़ाव में है, जहां बुजुर्ग घर बैठकर आराम करते हैं। 75 वर्षी नरेंद्र कौर ऐसी है जो धाम में प्रतिवर्ष नियमित मत्था टेकती है। अब तक वह 100 बार श्री हेमकुंड साहिब के दरबार में अपनी हाजिरी लगा चुकी है।
कमानो शहर चंड़ीगढ़ निवासी नरेंद्र कौर भी ऐसी आस्थावान हैं, जो शरीर से भले ही दुर्बल हो गई हों, लेकिन उनके हौसले इस कदर बुलंद हैं कि चालीस वर्ष से वह लगातार श्री हेमकुंड साहिब के दर्शन को आ रही हैं। 75 वर्षीय नरेंद्र कौर ने इस वर्ष श्री हेमकुंड साहिब की 100 वीं यात्रा पूरी की। श्री बदरीनाथ धाम तथा श्री हेमकुंड साहिब के दर्शन करने के बाद बुधवार को नरेंद्र कौर ऋषिकेश पहुंची। नरेंद्र कौर ने गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट में मत्था टेक कर निर्विघ्न यात्रा के लिए धन्यवाद अदा किया।
नरेंद्र कौर का भरा पूरा परिवार है। उन्होंने बताया कि घर में उनके पति, पुत्र, पुत्रवधू तथा पोते-पोतियां हैं। परिवार का अच्छाखासा कारोबार है, राइस मिल और पावर प्लांट का संचालन उनके पति व पुत्र करते हैं। नरेंद्र कौर ने बताया कि कारोबार के सिलसिले में घर के अन्य सदस्यों को वह अपने साथ यात्रा के लिए बाध्य नहीं करती। बल्कि ड्राइवर के साथ स्वयं ही यात्रा पर आ जाती हैं।
बुजुर्ग नरेंद्र कौर ने बताया कि वह पिछले चालीस वर्षों से लगातार श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए आ रही हैं। शुरुआत में वह कपाट खुलने तथा बंद होने पर दो-दो बार यात्रा करती थी। मगर, करीब दस वर्ष पूर्व हार्ट में स्टंट पड़ने के बाद से चिकित्सकों ने उन्हें इस तरह की यात्रा न करने की सलाह दी थी। नरेंद्र कौर बताती हैं कि वह एक बार के लिए तो मायूस हो गई थी, लेकिन मन में आस्था बलवती थी। मैंने अपने घर-परिवार वालों तथा चिकित्सकों की सलाह को अनदेखा कर वाहेगुरु पर भरोसा करते हुए स्वयं यात्रा पर निकल पड़ी। इसके बाद तो यह सिलसिला लगातार जारी है। इतना जरूर है कि अब वह कपाट खुलने व बंद होने के समय नहीं आ सकती। लेकिन कोशिश यही रहती है कि प्रत्येक वर्ष में गुरु स्थान पर मत्था टेकने जरूर आऊं। पहले वह पैदल चलकर यात्रा पूरी करती थी, अब वह घोड़े के सहारे धाम तक पहुंचती है।