– संस्कृत दिवस पर हुए श्रावणी उपाकर्म
ब्यूरो,ऋषिकेश
संस्कृत दिवस पर श्रावणी उपाकर्म विधि विधान के साथ मनाया गया। श्री जयराम आश्रम में संस्थाओं के और परमाध्यक्ष ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी के नेतृत्व में ऋषि कुमारों को विधि विधान के साथ वेदांत शिक्षा ग्रहण का अधिकार दिया गया।
श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज के सन्निधय में मां गंगा के तट पर वेदापाठी ब्राह्मणों ने सामूहिक गंगा स्नान, सूर्यउपासन, हेमाद्रि संकल्प, उपाकर्म, सप्तऋषिपूजन, ऋषि तर्पण आदि किया। ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि सनातन परंपरा में श्रावण मास की पूर्णिमा पर मनाएं जाने वाले श्रावणी उपाकर्म का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। क्योंकि महापर्व का संबंध उस पवित्र ब्रह्मसूत्र से है जिसके तीन धागे देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण के प्रतीक माने जाते है, जिसमें ब्राह्मण वर्ग अपनी आत्म शुद्धि के लिए उपाकर्म करते है, इस दिन यज्ञोपवित का पूजन का भी विधान है इस अवसर पर श्रावणी उपाकर्म के सभी कार्यक्रम पंडित सुवीर शर्मा के एवं वेदाचार्य मायाराम रतूड़ी के निर्देशन में सम्पन्न हुऐ। इस अवसर पर अशोक शर्मा जी, प्रदीप शर्मा, बीएम बडोनी, मुनीश शर्मा, रामाकान्त शर्मा, विजय जुगलाण, पंडित पंचराम व्यास, अंशुल रणाकोटी, सूर्यप्रकाश रतूड़ी, हंसराज भट्ट एवं श्री जयराम संस्कृत विद्यालय के सभी वेदपाठी उपस्थित रहे।
संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में विद्यालय के प्रधानाचार्य विजय जुगलाण ने विस्तृत रूप से छात्रों को उद्बोधित किया एवं संस्कृत सभा में सभी अध्यापकों, छात्रों ने प्रतिभाग किया । जिसमें छात्र शुभम उनियाल, विनायक, राम प्रकाश, श्रेयांस, पीयूष शर्मा, नमन रयाल, विनय रयाल शामिल हुए।
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वैदिक ब्राह्मण ने धूमधाम से मनाई श्रावणी पूर्णिमा
वैदिक ब्राह्मण महासभा ऋषिकेश के द्वारा हर वर्ष की भांति श्रावणी पूर्णिमा को बड़े ही हर्षोलास से मनाया गया। प्रातः त्रिवेणी घाट में विधि विधान से दशविध स्नान, तर्पण,मार्जन किया गया। उसके बाद में गणेशादि देवताओं का पूजन और हवन करके नवीन यज्ञोंपवीत धारण किए गए। उक्त कार्यक्रम की मुख्य सूत्रधार पूज्य केशव स्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा श्रावणी कर्म ब्राह्मणों का मुख्य संस्कार है। कहा जाता है इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है। एस कर्म को उपाकर्म भी कहा जाता है, इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है।
आचार्य बंसीलाल सिलस्वाल के आचार्यत्व में चले कार्यकर्म में वैदिक ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष जगमोहन मिश्रा, महामंत्री शिवप्रसाद सेमवाल, आचार्य महेश चमोली, गंगाराम व्यास ,राकेश भारद्वाज, डॉ जनार्दन कैरवान,राधाकृष्ण आमोला, डॉ जितेंद्र गैरोला, एलपी पुरोहित, मनोज नोटियाल,जगदीश जोशी,राकेश लसियाल,विकास कोठरी आदि उपस्थित थे